जब कभी यूसुफ़ ख़ान के बहु-बेटे उनसे मिलने आते, उनकी दृष्टी देर तक उस बक्से पर टिकी रहती जिसमें हमेशा ताला लगा रहता था और जिसे यूसुफ़ ख़ान कभी किसी के सामने नहीं खोलते थे। पर आज उनकी मौत के बाद यह सोच कर कि उनकी सारी जमापूँजी और वसीयतनामा इसी बक्से में होगी, उसका ताला तोड़ दिया गया। किंतु बक्से में से तीन जोड़ी कुर्ते-पायजामों तथा एक पत्र के इलावा उन्हें और कुछ न मिला। पत्र इस प्रकार था:
Monday, September 10, 2007
यूसुफ़ ख़ान का बक्सा
जब कभी यूसुफ़ ख़ान के बहु-बेटे उनसे मिलने आते, उनकी दृष्टी देर तक उस बक्से पर टिकी रहती जिसमें हमेशा ताला लगा रहता था और जिसे यूसुफ़ ख़ान कभी किसी के सामने नहीं खोलते थे। पर आज उनकी मौत के बाद यह सोच कर कि उनकी सारी जमापूँजी और वसीयतनामा इसी बक्से में होगी, उसका ताला तोड़ दिया गया। किंतु बक्से में से तीन जोड़ी कुर्ते-पायजामों तथा एक पत्र के इलावा उन्हें और कुछ न मिला। पत्र इस प्रकार था:
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2 comments:
बहुत खूब फ़िल्म "
बावर्ची" की याद दिला दी आपके लेख नें ।
Thanks Parul Ji, for your kind words. My mom will be happy to hear about your appreciation.
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