Saturday, November 24, 2007
नारायणी
स्वीकृति / अस्वीकृति के बीच
केवल
एक 'अ' का नहीं,
अपितु
असमान विचार-धाराओं का,
सोच का,
भावनाओं का गहन अंतर होता है।
इन दोनों के बीच,
पैंडुलम सा झूलता मन
व्यक्तिगत संस्कारों
और धारणाओं के आधार पर ही
निजी फ़ैसले करता है।
आज,
भ्रमित-मानसिकता के कारण
भयमिष्रित ऊहापोह में भटकते हुए
हम
भ्रूण हत्या की बात सोचते हैं
और
भूल जाते हैं
कि
अस्वीकृति की अपेक्षा
संभवत:
हमारी स्वीकृति ही
नारायणी बन
सुख, सौभाग्य की मृदु सुगंध से
हमारा घर-आँगन महकाने वाली हो।
'चेतना के स्वर', प 33
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2 comments:
बहुत सुंदर्… सारगर्भित…।
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
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